वानर बंधुओ की प्रेम भरा कहानिया
हिमवन की जंगल में कभी दो वानर बंधुओ रहा करते थे। बड़े का नाम नंदक और छोटे वाला का नाम चंदक था। वहाँ पर रहने वाले 90 हजार बानरों के वो मुखिया थे।
एक बार की बात है दोनों बानर बंधू अपने साथियों के साथ कूदते- फांदते हुए किसी दूर वाले जंगल में चले गए, वहाँ पर उनको नये-नये किस्मो के फलों का खूब आंनद लेने लगें। उनकी बुढ़ी माँ की हालत ऐसी थी कि वे कूद- फांद नही कर सकती थी क्योंकि उनकी बृद्धा अवस्था में बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही थी। उनकी माँ हिमवन में ही रहा करती थी। दोनों बानरों भाई अपने माँ पर भरपूर ध्यान रखते थे। वे नये वनों से अपनी माता के लिए फलो अपने साथियों के द्वारा भेजवाया करते थे।
कुछ दिन बाद दोनों भाइयो अपने घर हिमवन पहुँचे तो वो अपनी माता के ऐसी रूप देखा तो उनकी आँखों में आँसू आ गया ,उनकी माँ कि हाल बहुत ही ख़राब हो गया था, जो भी फल वे लोग भेजते अपनी साथियो के द्वारा सब वे लोग रास्ते में ही खा जया करते थे। उनकी माँ को कई दिन से खाना भी नही मिल रहा था, उनके माँ को देखने के बाद ऐसा लगा की उनके शरीर में सिर्फ कंकाल ही नजर आ रहा था।
वे अपनी माँ की ऐसी हाल में देखकर वे लोग उचित नही समझा अपने साथियों के साथ रहना, वे अपनी साथियो से दूर जाकर एक नए स्थान पर डेरा डाल दिया। वहाँ पर वे लोग अच्छे तौर तरीके से रहने लगे,नये स्थान पर वे लोग अपनी जीवन आनंदित और सुख संपय से रहने लगे।
कुछ दिन बाद उस वन में एक शिकारी आया ,शिकारी को देखते ही दोनों भाइयो ने घने पेड़ पर जाकर छुप गया।उनकी माँ तो बूढी हो गयी थी उनके आँखों से भी कुछ दिख नही पा रहा था , वे शिकारी को उनकी माँ ने नही देख पायी।
शिकारी एक ब्राह्मण था जो कभी तक्षशिला के विश्वविख्यात गुरु पाराशरीय के छात्र रह चुके थे,उनके पास इतने अवगुण थे की उनको अवगुणों के कारण वहाँ से निकाला गया था। जैसे ही शिकारी का नजर बूढी बंदरिया पर परा तो उसने तीर चलाना चाहा उस बूढी बंदर पर, दोनों भाइयो में से एक बानर नन्दक कूदते हुए नीचे आया शिकारी के पास आया और बोला है शिकारी आप मेरे जान ले लो और मेरी माँ को छोड़ दो,शिकारी ने तो उसकी बात मान ली और एक ही तीर में उसे मार डाला। दुष्ट शिकारी ने नन्दक के दिए हुए बचन को उल्लंघन करते हुए फिर उसकी बूढी माँ पर निशाना लगना चाहा तो , उसका छोटा भाई चादक ने नीचे आकर उनके सामने खड़ा हो गया, और बोला की आप मेरे प्राण ले लो और मेरी माँ को छोड़ दो,फिर उसने वैसा ही किया। देखते ही देखते उसको भी मार डाला। फिर भी शिकारी ने अपने वचन से मुकरते हुए एक तीर से उनकी बूढी माँ को भी मार दिया।
तीनो बानरों को मारकर शिकारी बहुत प्रसन हुआ,क्योकि उसने एक ही दिन में तीन शिकार किया था।
शिकारी अपने घर पहुचकर अपने पत्नी और बच्चे को अपने वीरता का पराक्रम अपने परिवार वालो को दिखाना चाहता था। थोड़ा देर में ही खबर मिला की शिकारी का घर जल कर ध्वस्त हो गया। उसके परिवार वालो को विश्वाश नही हुआ वे लोग अपने घर की तरफ दौड़ता हुआ चला गया । शिकारी अपने शिकार सहित तीर धनुष छोड़कर जलते हुए घर में परिवेश किया थोड़ा ही देर में उसके सर की उपर से जलते हुए छत गिर पड़ा और वह मर गया।
वहाँ के लोगो के कहना यह है कि ज्यो ही शिकारी अपने घर में प्रवेश किया धरती फट गयी और उसमें आग का भयंकर उठा और शिकारी का स्वहा हो गया।
हिमवन की जंगल में कभी दो वानर बंधुओ रहा करते थे। बड़े का नाम नंदक और छोटे वाला का नाम चंदक था। वहाँ पर रहने वाले 90 हजार बानरों के वो मुखिया थे।
एक बार की बात है दोनों बानर बंधू अपने साथियों के साथ कूदते- फांदते हुए किसी दूर वाले जंगल में चले गए, वहाँ पर उनको नये-नये किस्मो के फलों का खूब आंनद लेने लगें। उनकी बुढ़ी माँ की हालत ऐसी थी कि वे कूद- फांद नही कर सकती थी क्योंकि उनकी बृद्धा अवस्था में बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही थी। उनकी माँ हिमवन में ही रहा करती थी। दोनों बानरों भाई अपने माँ पर भरपूर ध्यान रखते थे। वे नये वनों से अपनी माता के लिए फलो अपने साथियों के द्वारा भेजवाया करते थे।
कुछ दिन बाद दोनों भाइयो अपने घर हिमवन पहुँचे तो वो अपनी माता के ऐसी रूप देखा तो उनकी आँखों में आँसू आ गया ,उनकी माँ कि हाल बहुत ही ख़राब हो गया था, जो भी फल वे लोग भेजते अपनी साथियो के द्वारा सब वे लोग रास्ते में ही खा जया करते थे। उनकी माँ को कई दिन से खाना भी नही मिल रहा था, उनके माँ को देखने के बाद ऐसा लगा की उनके शरीर में सिर्फ कंकाल ही नजर आ रहा था।
वे अपनी माँ की ऐसी हाल में देखकर वे लोग उचित नही समझा अपने साथियों के साथ रहना, वे अपनी साथियो से दूर जाकर एक नए स्थान पर डेरा डाल दिया। वहाँ पर वे लोग अच्छे तौर तरीके से रहने लगे,नये स्थान पर वे लोग अपनी जीवन आनंदित और सुख संपय से रहने लगे।
कुछ दिन बाद उस वन में एक शिकारी आया ,शिकारी को देखते ही दोनों भाइयो ने घने पेड़ पर जाकर छुप गया।उनकी माँ तो बूढी हो गयी थी उनके आँखों से भी कुछ दिख नही पा रहा था , वे शिकारी को उनकी माँ ने नही देख पायी।
शिकारी एक ब्राह्मण था जो कभी तक्षशिला के विश्वविख्यात गुरु पाराशरीय के छात्र रह चुके थे,उनके पास इतने अवगुण थे की उनको अवगुणों के कारण वहाँ से निकाला गया था। जैसे ही शिकारी का नजर बूढी बंदरिया पर परा तो उसने तीर चलाना चाहा उस बूढी बंदर पर, दोनों भाइयो में से एक बानर नन्दक कूदते हुए नीचे आया शिकारी के पास आया और बोला है शिकारी आप मेरे जान ले लो और मेरी माँ को छोड़ दो,शिकारी ने तो उसकी बात मान ली और एक ही तीर में उसे मार डाला। दुष्ट शिकारी ने नन्दक के दिए हुए बचन को उल्लंघन करते हुए फिर उसकी बूढी माँ पर निशाना लगना चाहा तो , उसका छोटा भाई चादक ने नीचे आकर उनके सामने खड़ा हो गया, और बोला की आप मेरे प्राण ले लो और मेरी माँ को छोड़ दो,फिर उसने वैसा ही किया। देखते ही देखते उसको भी मार डाला। फिर भी शिकारी ने अपने वचन से मुकरते हुए एक तीर से उनकी बूढी माँ को भी मार दिया।
तीनो बानरों को मारकर शिकारी बहुत प्रसन हुआ,क्योकि उसने एक ही दिन में तीन शिकार किया था।
शिकारी अपने घर पहुचकर अपने पत्नी और बच्चे को अपने वीरता का पराक्रम अपने परिवार वालो को दिखाना चाहता था। थोड़ा देर में ही खबर मिला की शिकारी का घर जल कर ध्वस्त हो गया। उसके परिवार वालो को विश्वाश नही हुआ वे लोग अपने घर की तरफ दौड़ता हुआ चला गया । शिकारी अपने शिकार सहित तीर धनुष छोड़कर जलते हुए घर में परिवेश किया थोड़ा ही देर में उसके सर की उपर से जलते हुए छत गिर पड़ा और वह मर गया।
वहाँ के लोगो के कहना यह है कि ज्यो ही शिकारी अपने घर में प्रवेश किया धरती फट गयी और उसमें आग का भयंकर उठा और शिकारी का स्वहा हो गया।
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